Tuesday, August 4, 2009

दर्पण

चेहरा बेक्तित्व का आइना है

मुख मंडल अनकहे सब ब्येक़त कर देता है

सकल जैसी भी हो

भाव चहेरे पर उजागर हो ही जाते है

बेदना हो या खुशी

हर तस्वीर साफ़ नजर आती है

अक्कस ही सची पहचान है

इसलिए कहते है

दर्पण झूट नही कहता है

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