Thursday, June 3, 2010

आँखों में

दर्द नूर बन बह आया

पूछ लिया साथी ने

क्यों अश्क बह गया

कह दिया हमने

धूल आँखों में समा गई थी

चुभन कुछ ज्यादा हो रही थी

इसलिए रो के आँखे साफ़ कर ली

काश बारिश हो रही होती

अश्क उसमे घुल गए होते

साथी को पता भी ना चलता

ओर हमको उनसे झूट कहना नहीं होता

जोर आंसुओ पे चलता नहीं

दर्द की ओर कोई दवा नहीं

आंसुओ के सिवा इसका ओर कोई आसरा नही

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