Saturday, February 18, 2012

बंजर भूमि

बंजर भूमि सावन को तरसे

कण कण पानी को तरसे

बादल छाये पर मेघा ना बरसे

खो गयी वो बसंती बहार

गुम हो गयी वो कोयल की पुकार

तरस रही धरती बूंद बूंद को

कर रही मेघों का इन्तजार

कर रही मेघों का इन्तजार

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