Monday, August 13, 2012

लाचार जिन्दगी

अकेलेपन की तनहाइयों में

जिन्दगी गुजरे कल में खो गयी

दायरा सिमट गया

झर झर नयन स्वत: ही बह पड़े

आंसुओ की माला

यादों की बारात बन गयी

इस परछाई के संग जीने को

जिन्दगी लाचार हो गयी

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