Thursday, November 8, 2012

बेमिशाल मोहब्बत

हुई मोहब्बत जो शराब से

हर जाम एक गजल बन गयी

हर शाम एक कविता बन गयी

आलम नशे का ऐसा चढ़ा

मधुशाला महबूबा बन गयी

सुरूर था सूरा का

लगी जो होटों से

संगिनी आखरी साँसों की हो गयी

बिन जाम कोई ना सहारा था

जीने का कोई ना बहाना था

यह वफ़ा की मिशाल थी

यारी इसकी बेमिशाल थी , बेमिशाल थी




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