Wednesday, September 4, 2013

राहों में

क्यों मिले तुम उन राहों में

मंजिल जिनकी कोई ना थी

सिर्फ सपनों की दुनिया थी

और बेकरार जिंदगानी थी

मिल ना सके जो प्यार कभी

उस कशिश में वो आरजू कहा थी

जुदा थी जिन्दगी की राहे मगर

मिलन की आस फिर भी पास थी

सुलग रही थी जो चिंगारी सीने में

आंसुओ के सैलाब में वो भी गुम थी

क्यों मिले तुम उन राहों में

मंजिल जिनकी कोई ना थी

मंजिल जिनकी कोई ना थी

 

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