Monday, January 13, 2014

बेईमान

न पूछों हम से

हमारे घर का पता

ठिकाना हमें मालूम नहीं

पनाह जहा मिली

रात वही गुजार दी

मिजाज मौसम का भी

हर रात बदल जाता है

शाम ढलते ढलते

सूरा का सुरूर छा जाता है

बेफिक्री के इस आलम में

बस एक ही ठिकाना नजर आता है

नीला आसमां छत

और फुटपात घर नजर आता है

पता पूछना इसलिए

बेईमान नजर आता है

बेईमान नजर आता है

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